Sun. May 12th, 2024

उत्तर मध्य रेलवे जोन के ऑफिसों में अधिकांश कार्यालयों में ट्रैकमैन एवं गैंगमैन से लिया जा रहा है महत्वपूर्ण काम, डीआरएम ऑफिस में डी-कैट्राइज बाबुओं की है भरमार जो काम के मामले में है जीरो,इन बाबुओं की यूनियनबाजी और धन उगाही बनी चर्चा का विषय

 दयाराम 👉महत्वपूर्ण कार्यों में वेतन बनाने जैसे, आई-पास आईडी पर कराया जा रहा है काम । गड़बड़ी होने पर आखिर कौन होगा जिम्मेदार ।

👉काम करने वाले बाबू की जगह अधिकारी चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों से करा रहे हैं काम ,आफिसों मे हैं इनकी भरमार।

👉डी-कैट्राइज्ड हुए बबुआ की मक्कारी से वास्तविक बाबुओं का हुआ है शोषण ।

👉डी-कैट्राईज लोको पायलट से लंबी रकम देकर कराई है डीआरएम ऑफिस में पोस्टिंग, 30 परसेंट किलोमीटर वेतन में अधिक लगने के कारण सीधे ओ0एस और सीओएस में हुई है लोको पायलटों की पोस्टिंग ।

👉एपीओ से अधिक वेतन होने के कारण घमंड में चूर रहते हैं डी-कैट्राईज बाबू ,काम के मामले में है यह बाबू जीरो

👉 विभाग में केवल यूनियन बाजी और वसूली का करते हैं ये काम ,कहीं पर है बाबू की भरमार तो कहीं हैं बाबुओ की कमी ।

👉 कहीं किसी यूनिट एवं डिपो में 15 कर्मचारियों के ऊपर है एक ओ0एस की पोस्टिंग और किसी यूनिट में 50 व्यक्ति पर बाबू है नादारद। और वेतन जैसा महत्वपूर्ण कार्य कराया जा रहा है चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी से जो जांच का विषय है ।

प्रयागराज । उत्तर मध्य रेलवे जोन के अधिकतर कार्यालयों में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के ट्रैकमैन और गैंगमैन कर्मचारियों से लिया जा रहा है बाबू का महत्वपूर्ण काम, जिससे वास्तविक बाबू को दरकिनार किया गया है । देखा जाए तो इनकी वजह से वास्तविक कैडर के बाबू की सीनियरिटी को भी लंबा नुकसान पहुंचाया गया है । क्योंकि डीकैट्राईज किए गए बाबू की भरमार सभी डिपार्टमेंट में मुखिया के तौर पर दी गई है ,जिसका कोई अनुपात नहीं है । चिकित्सा विभाग जैसे 17 पदों की स्वीकृति पर 50% डीकैट्राईज बाबू को ओएस और सीओएस बनाया गया है, जिससे वास्तविक बाबू का भविष्य अंधकार में चला गया है ।

इसकी शिकायत रेलवे बोर्ड तक की गई है और इसका रेलवे बोर्ड का एक पत्र भी है लेकिन उसका अनुपालन नहीं किया गया है क्योंकि इसमें अधिकारियों का भी फंसना तय है और नियम को ताक पर रखकर पोस्टिंग करने का कार्य किया गया है ।  इसी तरह तमाम कार्यों में चतुर्थ कर्मचारी गैंगमैन ,ट्रैकमैन को लगाकर आई-पास आईडी अधिकारियों द्वारा जारी करा कर एसएसई, आईओडब्ल्यू, पीडब्ल्यूआई के इशारे पर मनमानी तरीके से यात्रा भत्ता शिक्षण शुल्क वापसी जैसे कार्य कराए जा रहे हैं । जिन्हें नियमों को कोई अता पता नहीं और लोग फर्जी तरीके से भुगतान दे रहे हैं । इसमें विजिलेंस विभाग भी मूक दर्शक बना हुआ है और कहीं किसी यूनिट में जांच करने नहीं जाते हैं । ऐसे कई मामले हैं जो फर्जी यात्रा और शिक्षण शुल्क वापसी के हैं जिन पर जांच की गई तो इन चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों की क्या जिम्मेदारी बनती है । आखिर इसकी जवाबदेही किसकी होगी ,यह एक बड़ा सवाल है ।

इसी प्रकार सभी मंडल रेल प्रबंधक कार्यालयों में डी-कैटराईज बाबुओं की भरमार है और वास्तविक बाबू की आवाज दबाई जाती है क्योंकि यह ड्राइवर से लंबे-लंबे वेतन प्राप्त करने वाले कहीं पर भी पैसा फेंकने से चूकते नहीं हैं इसीलिए इनके पक्ष में सारे निर्णय लिए जाते हैं । जबकि डी-कैटराईज हुए लोको पायलट से बने बाबू काम के मामले में जीरो हैं और इनका वेतन एक एक लाख से ऊपर बनता है । ऐसे में कदाचारी अधिकारियों की मनमानी नीति ने इनकी पोस्टिंग करके सिस्टम को निकम्मा बना दिया है । देखा जाए तो वर्तमान में हुए सीबीआई के हादसे में मुख्य रोल बाबुओं का ही है लेकिन इसमें कहीं न कहीं बलि का बकरा अधिकारी को बनाया गया है ।  आखिर क्यों नहीं प्रशाशन इन बाबू की जगह जमे इन फोर्थ क्लास कर्मचारियों के मामले में चुप्पी साधे हैं ,यह एक बड़ा सवाल है । जबकि भारत सरकार का एक-एक लाख के बाबू बनाकर आर्थिक रूप से लंबा नुकसान पहुंचाया गया है । शायद मंत्रालय को एवं प्रधानमंत्री कार्यालय को इस मामले का संज्ञान नहीं है और ना ही ऊपर यह जानकारी दी जाती है । इन सब मामलों को नीचे स्तर पर दबा कर रखा जाता है । यही वजह है कि तमाम डी-कैटराईज बाबू की भरमार है क्योंकि काम के मामले में यह नकारा है एवं अपने को इंजन चलाने वाला चालक बताते है । अब देखना यह है कि रेलवे के उच्च अधिकारी इन पर क्या कार्रवाई करते हैं यह जांच का विषय है  ।

👉 यदि प्रशासन चाहे तो समस्त डीपो एवं यूनिटों के वेतन जैसे कार्य को एक जगह पर सेंट्रलाइज करके इन्हें डीआरएम ऑफिस के बाबू से वेतन और अन्य मामले के निस्तारण का कार्य किया जा सकता है । लाइन पर कार्य कर रहे बाबू एवं चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों का यात्रा भत्ता पर लगाम लगाईरो जा सकती है । तभी रेलवे राजस्व का फायदा और कार्यप्रणाली में सुधार संभव है । क्या इस मामले में अधिकारी के संज्ञान लेंगे या एक बड़ा सवाल है ।

 

इसी प्रकार देखा जाए तो रेलवे के टीआरडी डिपार्टमेंट भी नियमों को ताक पर रखकर अधिकारी मनमानी पर उतारू है और डिपो में कार्य की आवश्यकता को दिखाते हुए मनमानी पोस्टिंग करने का कार्य कर रहे हैं। लोगों को आनलोन एवं अस्थाई तौर पर भेज कर मनमानी तरीके से यात्रा भत्ता मे अपने चहेतों को कमवाने का कार्य किया जा रहा है। जो उनके व्यक्तिगत कार्य घर से लेकर गांव तक करते हैं उनको इसी प्रकार का प्रलोभन देकर कार्य कराया जाता है जो नियमतः गलत है । देखा जाए तो किसी भी यूनिट एवं डिपो की कार्य क्षमता वहां पर स्वीकृत पद पर ही दिया जाता है लेकिन उन पोस्टों को ना भर के लोन पर अस्थाई तौर पर कर्मचारियों को टीए पर भेजा जाता और टीआरडी विभाग में यात्रा भत्ता देना तो रेवड़ी बांटने के बराबर है । किसी को भी हंड्रेड परसेंट 500 रुपए यात्रा भत्ता देना एसएसई के बाएं हाथ का खेल है । यदि बुकिंग रजिस्टर, हाजिरी रजिस्टर और मास्टर रोल चेक किया जाए तो बड़े पैमाने पर फ्लूड लगाकर कटिंग की जाती है और अनुपस्थिति को उपस्थित बनाया जाता है एवं वेतन चार्ज कराया जाता है ।  जो चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के माध्यम से कराया जाता है । यह मामला भी उजागर होना तय है । इसीलिए एसएसई ने आईडी बनवा रखी है । ऐसे तमाम मामले का खुलासा विजिलेंस की जांच करने पर होगा और तब इस विभाग की असलियत व भ्रष्टाचार खुलकर सामने आएगी । यहां कर्मचारियों का इतना शोषण किया जाता है कि कोई मुंह खोलने को तैयार नहीं है । उसका सीधा इलाज पूरब से पश्चिम ट्रांसफर होता है, इसलिए जहां भ्रष्टाचार का खुलासा करने में लोग डरते हैं और वही अधिकारी का बहुत आतंक भी रहता है ।

 

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