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रेलवे के मंडलीय चिकित्सालय प्रयागराज को मिला एक  अर्से बाद तेज तर्रार सीएमएस ,हॉस्पिटल के कर्मचारियो मे मचा है हड़कंप ,जोन में है डी-कैटराइजो की भरमार

👉 फिरोजपुर डिवीजन से आए हैं नए सीएमएस, अच्छे कार्य का है अनुभव, अस्पताल मे है चर्चाओं का बाजार गर्म ।

👉 लाखों रुपए रिश्वत लेकर डॉक्टरों द्वारा किए गए हैं आरपीएफ ,गार्ड और लोको पायलट के कर्मचारी  डी-कैटराइज्ड , आखिर कब होगी ऐसे फर्जी डी-कैटराइज्ड किए गए कर्मचारियों की जांच ,एपीओ से अधिक उठा रहे हैं वेतन।

👉 सवालों के घेरे में है कि…जब कर दिए गए हैं लोको पायलट डी- कैटराइज्ड तो आखिर क्यों 30 परसेंट अतिरिक्त सैलरी में जोड़कर क्यों किया जाता है वेतन निर्धारण

प्रयागराज । एनसीआर के मंडलीय रेलवे चिकित्सालय में एक अर्से बाद एक तेज तर्रार और अनुभवी सीएमएस मिला है जिसे रेलवे बोर्ड द्वारा नियुक्ती की गई है । लंबे समय से चल रहे अस्पताल मे फर्जी डी-कैटराइज, सिक फिट और टेंडर में हो रही धांधली तथा दवाइयों की लोकल परिचेज, खरीद फरोख्त में सामिल फार्मासिस्ट आदि चल रहे भ्रष्टाचार को समाप्त करने में इस सीएमएस व एमडी की जोड़ी महत्वपूर्ण साबित हो सकती है ।
बता दें कि इन दिनों काफी समय से पीएमई में आए हुए लोको पायलट के जांच में कलर ब्लाइंड जैसा मुद्दा गर्माया हुआ है । जोन में एक ही नेत्र विशेषज्ञ होने के कारण पूर्व मे पूरे जोन में जो चिकित्सा परीक्षण किया गया था उसमें भारी धांधली वा नियमों की अनदेखी किए जाने के कारण वर्तमान में खुलासा हो रहा है और अपने को बचाने के लिए कर्मचारी के ऊपर मेलेग्रिंग जैसा शब्द इस्तमाल कर कर्मचारी का उत्पीड़न कर वीआरएस लेने को मजबूर किया जा रहा है ।

ऐसे में कई कर्मचारी के परिवार बिना वेतन के रोजी रोटी को लाले पड़े हुए हैं और उनके परिवार उत्पीड़न झेल रहा हैं एवम यह मामला न्यायालय तक मे भी लंबित है। इसका मुख्य कारण नेत्र विशेषज्ञ और हड्डी विशेषज्ञ के बीच खुल्लम-खुल्ला चल रहा खेल है जिसको पूरा चिकित्सा विभाग झेल रहा है । इतना ही नहीं यह लोग लगभग 15 – 20 वर्षों से एनसीआर जोन में ही कब्जा जमाए बैठे है । यह लोग वीआरएस की धमकी देते हैं, जिनका अब तक ट्रांसफर भी नहीं हुआ है और ना ही इनके कारनामों पर उच्च प्रशासन ने आज तक कोई कार्यवाही की है , यह एक बड़ा जांच का विषय है ।

बता दें कि पूर्व में किए गए लगभग 50 से 60 केस लोको पायलट , गार्ड आरपीएफ के कर्मचारी जो वर्ष 2016 से डी-कैटराइज्ड किए गए हैं उनकी फर्जी बीमारियां दर्शाई गई है और एम्स, संजय गांधी जैसे चिकित्सालयों से प्रमार्श भी समिल है । ऐसे मामलो में जो फर्जीवाड़ किया गया है वह अब दिखने लगा है ये लोग जो आज भी सभी स्वस्थ हैं और बिना बैसाखी के चल रहे हैं । यह  सब लंबी मोटी रकम देकर मनचाही पोस्टिंग लेकर बाबू के पद पर डीआरएम ऑफिस के पर्सनल डिपार्टमेंट में काबिज है ।  प्रशासन के द्वारा लिए गये गलत निर्णय के कारण ये लोग एक एक लाख का वेतन उठाने वाले बाबू बने हुए हैं जिनको एक पी0पी लिखना तक नहीं आता है । जिससे रेल राजस्व को करोड़ों का चूना लग रहा और वर्तमान समय में यदि ऐसे भ्रष्ट बाबू की पुनः चिकित्सा परीक्षण एक कमेटी बनाकर कराई जाए तो डी-कैटराइज्ड लोगों के मामले में एक बहुत बड़ा खुलासा होना तय है । बता दें कि यहां मास्टर सर्कुलर 25 का घोर उल्लंघन किया गया है, इससे प्रशासन की पोल खुलना तय है। इस मामले में मंडल स्तर पर चिकित्सालय वा कार्मिक विभाग की अहम भूमिका भी संदिग्ध है और इस मामले में रेलवे बोर्ड भी सक्रिय नहीं होता है । जबकि इस तरह का एनसीआर मे एक बहुत बड़ा रैकेट सक्रिय है जो वर्षों से काम कर रहा है , यह एक जांच का विषय है ।

अब देखना यह है कि भ्रष्टाचार में लिप्त अस्पताल के ऐसे डॉक्टरों पर क्या कार्रवाई होगी और नवनियुक्त जी0एम क्या इन मामलो को संज्ञान में लेकर कोई जांच कराएंगे या फिर सब कुछ भ्रष्टाचार के इस आलम मे ऐसे ही सब चलता रहेगा यह एक बड़ा सवाल है ।

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