कौशांबी में निजी स्कूलों की मनमानी चरम पर: न NCERT की किताबें, न पारदर्शिता — शिक्षा बनती जा रही है व्यापार ,जिला प्रशासन कब करेगा इन निजी विद्यालयों पर कार्यवाही

👉 कौशांबी में निजी स्कूलों की मनमानी फीस वसूली पर हंगामा!
स्कूलों ने छोड़ा NCERT पाठ्यक्रम, थोप रहे निजी प्रकाशकों की महंगी किताबें।
👉 हर साल बदलते हैं किताबों के सेट, अभिभावकों पर भारी आर्थिक बोझ। 20-25 पन्नों की किताब ₹300-₹500 में बेची जा रही है!
👉 स्कूलों की पसंदीदा दुकानों से ही लेनी पड़ती हैं किताबें-ड्रेस , दुकानदार नहीं देते रसीद, छूट भी नहीं — टैक्स चोरी की आशंका।
सीबीएसई और शिक्षा विभाग के निर्देशों की खुली अनदेखी।
👉 अभिभावक बोले — शिक्षा नहीं, शोषण हो रहा है!
सम्भल में हुई कार्रवाई के बाद कौशांबी में भी कार्रवाई की मांग।
प्रशासन से सवाल — कब टूटेगा प्राइवेट स्कूलों के ‘शिक्षा व्यापार’ पर शिकंजा ..
कौशाम्बी। जिले के निजी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता से अधिक लाभ कमाने की प्रवृत्ति हावी होती जा रही है। सीबीएसई से मान्यता प्राप्त होने के बावजूद अधिकांश स्कूल NCERT द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम की अवहेलना कर रहे हैं। इसके बजाय वे निजी प्रकाशकों की महंगी किताबें छात्रों को थोप रहे हैं।
हर वर्ष बदल जाता है पाठ्यक्रम – अभिभावकों का कहना है कि हर साल किताबों का सेट बदल दिया जाता है। इससे न केवल पुराने छात्रों की किताबें अनुपयोगी हो जाती हैं, बल्कि नए सेट के नाम पर अभिभावकों पर हजारों रुपये का अतिरिक्त बोझ भी डाल दिया जाता है। कई बार 20–25 पन्नों की साधारण पुस्तकों के लिए ₹300–₹500 तक वसूला जाता है।
निश्चित दुकानों से खरीद का दबाव – अभिभावकों को किताबें और यूनिफॉर्म केवल उन्हीं चिन्हित दुकानों से खरीदने के लिए मजबूर किया जाता है, जिनका सीधा संबंध स्कूल प्रबंधन से होता है। अन्य दुकानों पर वही किताबें उपलब्ध नहीं कराई जातीं। इससे दुकानदारों को एकाधिकार मिलता है और कीमतों पर कोई नियंत्रण नहीं रह जाता।
रसीद नहीं, रियायत नहीं – इन दुकानों से खरीद पर कोई बिल या रसीद नहीं दी जाती, जिससे टैक्स चोरी की आशंका भी बनी रहती है। साथ ही, एमआरपी पर भी कोई छूट नहीं दी जाती, जबकि थोक में खरीदी जा रही किताबों की लागत कहीं कम होती है।
कानून और दिशा-निर्देशों की खुली अनदेखी
शिक्षा विभाग और सीबीएसई द्वारा बार-बार यह निर्देश दिए जाते रहे हैं कि:
NCERT की किताबें ही अनिवार्य रूप से पढ़ाई जाएं। स्कूल किसी विशेष दुकान से खरीदारी के लिए बाध्य नहीं कर सकते।
सभी शुल्क पारदर्शी हों और अतिरिक्त शुल्क वसूली पर रोक हो लेकिन इन निर्देशों का पालन जमीन पर होता दिखाई नहीं देता।
प्रशासनिक हस्तक्षेप की जरूरत – सम्भल जिले में डीएम द्वारा की गई सख्त कार्रवाई के बाद अब कौशांबी में भी डीएम व जिला विद्यालय निरीक्षक से तत्काल कार्रवाई की मांग की जा रही है। अभिभावक समुदाय चाहता है कि ऐसे स्कूलों की जांच कर उन पर कार्रवाई की जाए जो शिक्षा के नाम पर आर्थिक शोषण में लगे हैं।
क्या शिक्षा का अधिकार एक विकल्प है या मजबूरी?
जब शिक्षा व्यवस्था का निजीकरण इस स्तर पर पहुंच जाए कि छात्रों और अभिभावकों के पास न विकल्प हो, न शिकायत की जगह, तब यह सवाल उठना लाज़मी है — क्या शिक्षा अब सेवा नहीं, सिर्फ सौदा बनकर रह गई है?
अमरनाथ झा पत्रकार ( 8318977396 )