एनसीआर जोन के चिकित्सा विभाग मे व्याप्त है भ्रष्टाचार का जखीरा,नहीं हो रही है कोई कार्रवाई, बिजलेंस एवं सीवीसी भी बना बौना, आखिर क्यों करता है जांचों की लीपापोती
👉 कैसे हुई केंद्रीय चिकित्सालय में डा0.विनीत अग्रवाल की एडवांस में पोस्टिंग, जांच का विषय ।
लंबे समय से सिक पर चल रहे है विनीत अग्रवाल ,राजीव कपूर के सेवानिवृत्त होने का कर रहे इंतजार ।
👉 कैसे बिना अनुमति के डॉ0 रीना अग्रवाल गई थी विदेश, आखिर कैसी हुई इनकी छुट्टी सेंसन पोस्ट फैक्टो ।
👉 मुख्य लैब अधीक्षक कानपुर के खिलाफ चल रहे हैं विजिलेंस केस, आखिर क्यों जांच को किया गया निष्क्रिय एवं कहां रहते हैंं यह लैब से गायब, बड़ा सवाल ।
👉 आखिर क्या है वजह की झांसी में 2-2 पैथोलॉजिस्ट की बनी हुई है तैनाती ।
👉 आखिर क्यों नहीं किया जा रहा है डॉक्टर उमेश का प्रशासनिक स्थानांतरण, कौन है इसके पीछे देने वाला संरक्षण ।
👉 फिर केंद्रीय चिकित्सालय में शुरू हुआ फर्जी मेडिकल डी-कैटराइज का धंधा ।
👉 भगवान भरोसे चल रही है कानपुर रेलवे चिकित्सालय की लैब, यहां नहीं है पोस्ट कोई पैथालाजिस्ट ।
प्रयागराज । रेलवे एनसीआर में यहां तमाम विभागों में भ्रष्टाचार व्याप्त है ,वही रेलवे का चिकित्सा विभाग भी इससे अछूता नहीं है । इस डिपार्टमेंट में करप्शन इतना ज्यादा है कि रेलवे को दीमक की तरह राजस्व को चाट रहा है और तानाशाही इस कदर है कि मरीजों को कोई देखने सुनने वाला नहीं है ।
बता दें कि सर्दी जुखाम बुखार एवं डेंगू के मरीज सीधे-सीधे रिफर किए जा रहे हैं और प्राइवेट संबंधित अस्पतालों को लाखों रुपयों का फायदा कमीशन खोरी के चक्कर में पहुंचाया जा रहा है । जिसमें इलाज के बिलों को आंख मूंदकर बिना किसी कटौती के बिल पास किया जा रहा है और डॉक्टर से लेकर बाबू तक की चांदी है । इतना ही नहीं कानपुर में बाबू ने एक प्राइवेट आदमी को इन सभी बिलों को उठाने व रखने एवं लिखा पढ़ी करने में अपने जेब से उसको वेतन देता है । यह कारनामा खुलेआम चल रहा है ,आखिर किस अधिकारी और डॉक्टर एवं संरक्षण में या भ्रष्टाचार फल-फूल रहा है तथा नियमों की अनदेखी की जा रही है यह एक बड़ा सवाल है ।
इसी प्रकार पैथोलॉजिस्ट का प्रशासनिक स्थानांतरण 2 वर्ष पूर्व किए जाने के पश्चात आज तक झांसी में दो पैथोलॉजिस्ट काम कर रहे हैं । जबकि कानपुर को बिना पैथोलॉजिस्ट के इतना बड़ा अस्पताल चलाया जा रहा है । यहां हमेशा भ्रष्टाचार की शिकायतें कानपुर लैब से संबंधित सुर्खियों में रही है और विजिलेंस केस तक चल रहे हैं ,उनकी भी लीपापोती कर दी गई है एवं अब तो इतना अंधेर नगरी हो गई है कि लैब अधीक्षक अपने लैब में बैठता ही नहीं है । यह कहां गायब रहता है इसका कोई अता पता नहीं है । इसके गायब रहने की जांच यहां पर लगे सीसीटीवी कैमरे के फुटेज से निकाल कर की जा सकती है । जिससे कर्मचारियों के मनमानी पर रोक लग सके ।
इसी प्रकार केंद्रीय चिकित्सालय से डा0 विनीत अग्रवाल का स्थानांतरण गोरखपुर किया गया था । एक महीने बाद डॉक्टर विनीत सिक पर चले गये और उसी दौरान रेलवे बोर्ड से अपनी पोस्टिंग का आदेश एडवांस में केंद्रीय चिकित्सालय के लिए कंसलटेंट पद के लिए करा लाए हैं । यह अभी तक खुद सिक पर ही बने हुए हैं और डॉ0 राजीव कपूर के सेवानिवृत होने का इंतजार कर रहे हैं । उन्होंने बाकायदा अपना बोर्ड और चेंबर नीचे एडवांस में तैयार करा लिया है, जहां एक और रेल में डॉक्टरों की कमी का रोना रोया जाता है वहीं दूसरी ओर यह ढाई लाख के सफेद हाथी बने बैठे रहते हैं और रेलवे इनको पाल रहा है । आखिर कौन है वह रेलवे बोर्ड में उच्च अधिकारी जो इनको संरक्षण दे रहा है, यह बहुत बड़ा जांच का विषय है । आखिर कौन है वह डॉक्टर जो इतने लंबे समय से डॉ0 विनीत अग्रवाल को सिक पर रखे हुए हैं ,यह भी जांच का विषय है ।
इतना ही नहीं सिक फिट में इतनी ज्यादा घोर अनियमितताएं हो रही हैं कि कर्मचारियों को बैक डेट से सिक फिट किया जा रहा है और उनसे मनमानी रुपया वसूला जा रहा है ।
सूत्रों की मानें तो ₹100 प्रतिदिन के हिसाब से कर्मचारियों से एक- एक डॉक्टर महीने में कई हजार रुपए का वारा न्यारा कर रहे हैं । यह पैसा ऊपर तक पहुंच रहा है जिस पर बिजलेंस विभाग आंख मूंद कर बैठा है । कर्मचारी बैक डेट में सिक मेमो लाता है और बाद में सिक फिट लेता है यह भी एक गंभीर आरोप है जो जांच का विषय है । यदि इनके ओपीडी के परिचय एवं जी-92 प्रमाण पत्र और सिक फिट मेमो की तारीख का मिलान किया गया तो ऐसे बहुत से केस विजिलेंस विभाग के लिए चुनौती बनेंगे । इतना ही नहीं लोगों के बिना रजिस्ट्रेशन आरईएलएचएस कार्ड किए गए कर्मचारियों को रेफर किया जा रहा है और मुफ्त में इलाज करके रेलवे के राजस्व को चूना लगाया जा रहा है । सिर्फ कमीशन खोरी के चक्कर में यह धंधा खुलेआम चल रहा है ।
बता दें कि केंद्रीय चिकित्सालय में भ्रष्टाचार का आलम यह है कि यहां पर एक वर्ष पूर्व डॉ0 रीना अग्रवाल बिना छुट्टी और बिना अनुमति के विदेश गई हुई थी, तभी कोरोना लग जाने के बाद विदेश में ही रूकी रही थी । वहां से आने के बाद इनके भाई एडीआरएम थे तथा डीआरएम की कृपा उस कार्यकाल में इन्होंने अपनी छुट्टी पोस्ट फैक्टो सैंक्शन करा ली थी । जिस पर विजिलेंस विभाग ने कोई आपत्ति नहीं जताई और ना ही इस मामले में आज तक कोई जांच हुई है, यह एक बड़ा सवाल है ।
कौशांबी वॉइस की भ्रष्टाचार की खबरों का असर होने के बाद कुछ दिनों तक डी- कैट्राइज का धंधा शांत हो गया था लेकिन अब पुनः फिर यह धंधा फलने फूलने लगा है । कई लोग दलालों के माध्यम से पैसा लिए घूम रहे हैं और डॉक्टरों के संपर्क में बने हुए हैं । इसी तरह कई चिकित्सा परिचारक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी जो डॉक्टरों के पास वर्षों से लगे हुए हैं, वे लोग इन कर्मचारियों के संपर्क में रहकर सेटिंग बना रहे हैं यह भी एक जांच का विषय है ।
मजेदार बात तो यह है कि अब तो दीपावली का त्योहार भी बहुत करीब है । साल भर से बैठे हुए मेहनतकश डॉक्टर एवं अधिकारी व कर्मचारी गेट पर बैठकर फार्मो का इंतजार इसलिए कर रहे हैं कि अब उनको गिफ्ट के बड़े-बड़े डब्बे और नोट की गड्डियां कब आएंगी इसका भी बड़ी बेसब्री से इंतजार चल रहा है ।
अमरनाथ झा – पत्रकार , 8318977396