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सरकारी आइटीआई मंझनपुर टेवा में करोड़ों का घोटाला- पारदर्शिता पर सवाल, आरटीआई के जवाब में देरी और अस्पष्टता-भ्रष्टाचार छिपाने का प्रयास, प्रशासनिक पारदर्शिता पर मंडराता संकट

👉 आरटीआई प्रावधानों की अनदेखी: कब मिलेगा न्याय? ,
 भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच की मांग: जवाबदेही तय करने की जरूरत ।

👉 बाहरी छात्रों का नांमाकन कराकर कराया टॉप ,कई अनुदेशक के परिजन व रिश्तेदारों का भी हुआ है नांमाकन । वर्ष 2018 से 2023 तक में है गड़बड़ी..

कौशाम्बी । जिले के आईटीआई मंझनपुर टेवा क्षेत्र में सरकारी धन के दुरुपयोग और भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप सामने आए हैं। विशेष रूप से, सरकारी सामानों की खरीद में करोड़ों रुपये के घोटाले का मामला उजागर हुआ है। इस संदर्भ में वरिष्ठ पत्रकार अमरनाथ झा ने सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत 5 अक्टूबर 2023 को इस मामले की पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए जानकारी मांगी थी। हालांकि, कई प्रयास के बावजूद, आरटीआई आवेदन पर विभाग की प्रतिक्रिया अनियमित और अधूरी है, जिससे भ्रष्टाचार के आरोप और मजबूत हो गए हैं।

आरटीआई के तहत कुल पांच प्रश्न पूछे गए थे, जिनमें से मुख्य प्रश्न (1 से 3) का कोई उत्तर प्रदान नहीं किया गया। वहीं, शेष प्रश्नों (4 और 5) के उत्तर अधूरे और अस्पष्ट हैं। दिनांक 24 दिसंबर 2024 को डाक द्वारा प्राप्त उत्तर न केवल अधूरे हैं, बल्कि यह मामला छुपाने की मंशा भी स्पष्ट करते हैं। आरटीआई अधिनियम के तहत यह प्रावधान है कि यदि 30 दिनों के भीतर मांगी गई जानकारी प्रदान नहीं की जाती, तो संबंधित विभाग को यह जानकारी निशुल्क उपलब्ध करानी होती है। इसके बावजूद, विभागीय अधिकारी इस प्रावधान की अनदेखी कर रहे हैं।

यह स्थिति प्रशासनिक पारदर्शिता और जवाबदेही पर गंभीर प्रश्न खड़े करती है। मंझनपुर आईटीआई से संबंधित इस मामले में अधिकारियों का रवैया दर्शाता है कि वे घोटाले को उजागर होने से बचाने के लिए कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग कर रहे हैं। स्पष्ट और समय पर उत्तर न देना न केवल आरटीआई अधिनियम का उल्लंघन है, बल्कि यह इस बात का संकेत भी है कि भ्रष्टाचार को छुपाने के लिए एक संगठित प्रयास चल रहा है।

बता दे की आईटीआई मंझनपुर हमेशा विवादों में रहा है। यहां पर एक अनुदेशक विवेक तिवारी पर एक छात्रा का कैरियर बर्बाद करने और उसके साथ दुर्व्यवहार करने का मामला उठा था। छात्रा ने विभागीय उच्च अधिकारी को भी शिकायत की थी लेकिन मामले में सुनवाई नहीं हुई है तो उसने विवेक तिवारी के खिलाफ कोतवाली मंझनपुर मुकदमा भी दर्ज कराया है ।

यह घोटाला न केवल सार्वजनिक धन की हानि का प्रतीक है, बल्कि शासन और प्रशासन की निष्पक्षता पर भी प्रश्नचिह्न लगाता है। यदि शीघ्र कार्रवाई नहीं की गई, तो इससे न केवल प्रशासनिक पारदर्शिता को नुकसान पहुंचेगा, बल्कि यह भ्रष्टाचार को और बढ़ावा देगा। ऐसे में जरूरी है कि संबंधित विभाग तत्काल आरटीआई का विस्तृत और सटीक उत्तर प्रदान करे। इसके साथ ही, इस मामले की उच्चस्तरीय जांच कराई जाए और दोषी अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई की जाए। पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना न केवल प्रशासनिक प्राथमिकता होनी चाहिए, बल्कि यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया की विश्वसनीयता को बनाए रखने का आधार भी है।

 

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