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मंझनपुर रेंजर और बीट सिपाही की मिलीभगत से हो रहा हरे फलदार पेड़ों की कटाई,दो सप्ताह में रेंजर ने कटवा दिए कई दर्जन हरे पेड़, लुटेरो की तरह पैसा वसूली मे जुटा रेंजर, चट कर रहा हरियाली

👉 चायल और मंझनपुर में रेंजर ने मचाई लूट, खुलेआम कटवा रहा हरे पेड़, आंख मूंदकर बैठा हुआ है विभाग ।

👉 15 दिन के भीतर कटवा दिया कई दर्जन हरे पेड़, कब होगी भ्रष्ट रेंजर राज कैथवाल पर कार्यवाही, रात दिन ढूंढता है सिर्फ पैसा ही पैसा ।

👉 भ्रष्ट और लुटेरे के हाथ में है मंझनपुर और चायल की कमान, आखिर कब इसके कारनामों की होगी जांच ,

कौशाम्बी । जिले में पुलिस और वन विभाग की सांठगांठ से हरे-भरे पेड़ों की कटाई का सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा है। ताजा मामला करारी थाना क्षेत्र के मंगौरा गांव के पास का है, जहां लकड़ी माफियाओं ने बीट सिपाही की मिलीभगत से कई विशाल हरे फलदार पेड़ काट डाले।

उत्तर प्रदेश सरकार जहां पर्यावरण संरक्षण के लिए करोड़ों रुपए खर्च कर रही है, वहीं जिले में हर दिन पेड़ों की अवैध कटाई से वन संपदा को नुकसान पहुंचाया जा रहा है। वन विभाग और हल्का पुलिस की निष्क्रियता और सांठगांठ के कारण यह समस्या तेजी से बढ़ रही है। डीएम के सख्त आदेशों के बावजूद, पेड़ों की कटाई बदस्तूर जारी है, जिससे हरे पेड़ों की संख्या में भारी कमी हो रही है।

मंझनपुर रेंज के रेंजर राज कैथवाल पर पहले भी लकड़ी माफियाओं से मिलीभगत के आरोप लग चुके हैं, लेकिन इन मामलों पर अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है । हर बार शिकायतें ठंडे बस्ते में डाल दी जाती हैं। जिले में लगातार घटती वन संपदा पर्यावरणीय संकट का संकेत दे रही है, जिससे स्थानीय लोग भी चिंतित हैं। एक सप्ताह पहले उरई असरापुर में 8 महुआ के हरे पेड़ कटवा दिए गए हैं वहीं दरियापुर में कई हरे पेड़ कट गए। राज कैथवाल चायल का भी प्रभारी है इसलिए 15 दिन पहले चरवा क्षेत्र में दो दर्जन से ज्यादा शीशम के पेड़ कटवा दिया है। सूत्रों की माने तो कई लाख रुपए महीना लेकर लकड़ी माफियाओं से मिलकर धडल्ले से रेंजर पेड़ कटवा कर करोड़पति बनने पर लगा है। आखिर इस रेंजर के कार्यप्रणाली की जांच विभागीय अधिकारी क्यों नहीं करा रहे हैं कही ऐसा तो नहीं कि इस अवैध कमाई का धन ऊपर तक पहुंच रहा है यह एक बड़ा सवाल है।

अब सवाल यह उठता है कि वन विभाग और पुलिस के ऐसे भ्रष्ट कर्मचारियों पर उच्च अधिकारी कब कार्रवाई करेंगे? यह अनदेखी न केवल पर्यावरण के लिए खतरनाक है, बल्कि शासन की साख पर भी सवाल खड़े करती है।

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