कौशांबी पुलिस नहीं करती कानून का खुद पालन,नागरिकों के मौलिक अधिकार को करती है प्रभावित, सीधे करती है गिरफ्तारी,नहीं देती है BNS 35 का नोटिस और नही करती है अरेस्ट मेमो का पालन
👉 बीएनएस की धारा 35 ( C ) आदि का नहीं करती है पालन ,लोगो के मौलिक अधिकारी का करती है खुलेआम हनन ।
👉 सुप्रीम कोर्ट का भी है आदेश कि पुलिस इन्लीगल तरीके से सीधे न करे गिरफ्तारी , पुलिस नहीं करती है खुद प्रोटोकॉल का पालन आखिर क्यों, बड़ा सवाल….
👉 कौशाम्बी पुलिस अपने जेब में रखती है कानून और करती है तानाशाही, व्यक्ति की आर्टिकल 21 के तहत आरोपियों और उसके परिजनों को गिरफ्तार कर उनकी छीन रही है व्यक्तिगत और दैहिक स्वतन्त्रता ।
👉 जिले के हर थाने में गिरफ्तार किए गए लोगों के साथ पुलिस की होती है मनमानी, खुलेआम होता है पुलिसिया उत्पीड़न, छीन रही लोगो के मौलिक अधिकार।
👉 कानून के सीआरपीसी की धारा 41 ए और अब बीएनएस 35 (सी ) को पुलिस ने बनाया मजाक, अपनी ही मनमानी पर उतारू है जिले की पुलिस। जबकि आर्टिकल 21 का हनन होने पर सुप्रीम कोर्ट में हो सकती है सीधे सुनवाई ।
रिपोर्ट – अमरनाथ झा ।
कौशाम्बी । जिले में पुलिस प्रशासन पर आरोप है कि वह कानून का पालन नहीं कर रहा और गिरफ्तारी में कानूनी प्रक्रियाओं की अवहेलना कर रहा है। रिपोर्टों के अनुसार, पुलिस द्वारा मनमाने तरीके से लोगों को गिरफ्तार कर उन्हें कई दिनों तक थाने में बैठाए रखना, उनकी स्वतंत्रता और अधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन है। भारतीय संविधान का आर्टिकल 21 हर नागरिक को व्यक्तिगत और दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है। पुलिस की मनमानी कार्यवाही इस अधिकार का सीधा हनन करती है, जो कानून के शासन पर सवाल उठाती है।
कानूनी रूप से, किसी भी व्यक्ति की गिरफ्तारी के समय पुलिस को एक अरेस्ट मेमो बनाना आवश्यक है, जिस पर आरोपी के परिवार के सदस्य के हस्ताक्षर होना अनिवार्य है, ताकि गिरफ्तारी की जानकारी उनके परिवार को दी जा सके। इसके अतिरिक्त, दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के तहत गिरफ्तारी से पूर्व व्यक्ति को नोटिस देना भी जरूरी है ताकि उसे अपनी बात रखने का अवसर मिल सके। इसके बावजूद, कौशांबी पुलिस इन नियमों का पालन न करके मनमानी गिरफ्तारियाँ कर रही है, जो कानून की स्पष्ट अवमानना है। इस प्रकार की घटनाओं से न केवल व्यक्ति की स्वतंत्रता बाधित होती है, बल्कि उनके मौलिक अधिकार भी प्रभावित होते हैं।
पुलिस प्रशासन का काम अपराधियों को कानून के दायरे में लाना और आम जनता की सुरक्षा सुनिश्चित करना है, परंतु जब वही प्रशासन कानून की अवहेलना कर तानाशाही तरीके से कार्य करने लगे, तो समाज में असुरक्षा का माहौल पैदा हो जाता है। कौशांबी में पुलिस का यह रवैया लोगों में पुलिस के प्रति विश्वास को कम कर रहा है। पुलिस अधिकारियों पर यह आरोप भी लगाए जा रहे हैं कि जिले के एसपी, सीओ, और थाना प्रभारी की मिलीभगत से कानून का उल्लंघन किया जा रहा है, जिससे निर्दोष नागरिकों को परेशान किया जाता है और उनके अधिकारों का दुरुपयोग होता है।
कानून स्पष्ट रूप से बताता है कि यदि किसी व्यक्ति पर कोई आरोप है, तो पुलिस सबसे पहले उसे नोटिस जारी करेगी और उसे पुलिस के सामने उपस्थित होने का मौका देगी। यदि आरोपी नोटिस पर हाजिर नहीं होता, तब पुलिस को अदालत से वारंट प्राप्त कर कानूनी प्रक्रिया के तहत गिरफ्तारी करनी चाहिए। परंतु कौशांबी में इन मानकों का उल्लंघन हो रहा है। गिरफ्तारी के समय अरेस्ट मेमो तैयार करने और उस पर आरोपी तथा उसके परिवारजन के हस्ताक्षर लेने की प्रक्रिया भी बहुत जरूरी है ताकि गिरफ्तारी का उचित रिकार्ड हो सके, लेकिन पुलिस प्रशासन इस प्रक्रिया का पालन नहीं कर रहा है।
अगर पुलिस अधिकारियों को इस प्रक्रिया की जानकारी नहीं है, तो यह भी एक गंभीर चिंता का विषय है। इस प्रकार की अवहेलना यह दर्शाती है कि पुलिस प्रशासन कानून के प्रति उदासीन है या फिर जानबूझकर कानून का पालन नहीं करना चाहता। ऐसे में, पुलिस विभाग को चाहिए कि वह प्रत्येक जिले में अधिकारियों को कानूनी प्रक्रियाओं की उचित ट्रेनिंग दे, ताकि नागरिकों के अधिकार सुरक्षित रहें और कानून का सही पालन हो सके।
ऐसी स्थिति में पीड़ित नागरिक सीधे सुप्रीम कोर्ट में जाकर अपनी शिकायत दर्ज कर सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी ऐसे मामलों में पुलिस की मनमानी पर सख्त कदम उठाए हैं और गिरफ्तारी प्रक्रियाओं में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए हैं। कोर्ट का मानना है कि किसी भी व्यक्ति की स्वतंत्रता का अनावश्यक हनन नहीं होना चाहिए और गिरफ्तारी के समय सभी आवश्यक प्रक्रियाओं का पालन होना चाहिए।
निष्कर्षतः, कौशांबी में पुलिस द्वारा कानून का उल्लंघन और मनमानी कार्रवाई न केवल नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन करती है, बल्कि उनके प्रति पुलिस प्रशासन के प्रति विश्वास को भी कमजोर करती है। ऐसे में पुलिस विभाग और संबंधित प्रशासनिक अधिकारियों को इस विषय पर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए और कानून का उचित पालन सुनिश्चित करना चाहिए।
इस मामले जब एसपी कौशाम्बी ब्रिजेश श्रीवास्तव से बात करने के लिए उनके सीयूजी नंबर 9454400288 पर 9415254415 से बात की गई तो बात नहीं हो पाई और जब आईजी और एडीजी प्रयागराज के फोन 9454400195 और 9454400139 पर संपर्क किया गया तो पीआरओ द्वारा दोनों अधिकारी व्यस्त बताए गए ।
अमरनाथ झा पत्रकार – 9415254415 , 8318977396