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रेलवे एनसीआर मे सोशल मीडिया के टेंडर को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म, अनुभव हीन एजेंसी को मिला करोड़ों का ठेका, कई अधिकारियो के कार्यप्रणाली पर उठ रहा सवालिया निशान

👉 अनुभवहीन एजेंसी को दिया गया सोसल मीडिया क ठेका , चर्चाओं का बाजार गर्म । रेलवे एनसीआर का मामला।

👉 महीनो पहले किया गया टेंडर,दिया गया करोड़ों का ठेका ,नही है कोई काम का अनुभव ,सेटिंग गेटिंग का हुआ खेल,11 एजेंसियों ने टेंडर में लिया था हिस्सा।

👉 रेलवे के प्रयागराज और दिल्ली के अधिकारियों की सेटिंग से 2 साल टेंडर में खेल की चर्चा ,जांच की उठी मांग…

प्रयागराज । जिले में रेलवे का एक करोड़ों का टेंडर वाला कारनामा चर्चा का विषय बना हुआ है । रेलवे ने सोशल मीडिया का 8 करोड़ का टेंडर उस एजेंसी को दिया जिसने कभी सोशल मीडिया का काम ही नहीं किया है , जिसका नाम डॉट बताया गया है । अब इन दिनों शहर मे रेलवे का यह कारनामा चर्चा का विषय बन गया है । बताया तो यह भी जाता है कि जो सोसल मीडिया का काम किया है उसको यह काम का टेंडर मिलना चाहिए लेकिन उच्च अधिकारियों की मिली भगत से इसमें बड़े पैमाने पर गड़बड़ी कर दिया गया है । बता दें कि इस दो साल के 8 करोड़ विज्ञापन के टेंडर में 11 एजेंसियों ने बढ़ चढ़कर कर हिस्सा लिया था, जिनके पास काम का अनुभव भी है। रेलवे में पहले से ही काम कर रही ऐड एजेन्सी 8 है ,जो काम करने वाली बताई जा रही है लेकिन इस सोशल मीडिया के टेंडर को एक ऐसी एजेंसी डॉट इन को दिया गया है जो सवालों के घेरे में है। यह टेंडर उसे कैसे मिला क्या अनैतिक लाभ लेकर दिया गया है,यह भी एक बड़ा सवाल है ,जिसमें जांच की मांग हो रही है। यह एजेंसी खुद काम नहीं कर रही है ,एजेंसी खुद काम नहीं कर दूसरे से यह काम करा रहीं हैं और इस एजेंसी के मालिक नागेन्द्र तिवारी है । सवाल यह उठता है कि यदि ऐसे ही काम करना था तो पहले से ही सभी 8 एजेंसियों को काम दे देना चाहिए था लेकिन अनुभवहीन एजेंसी को कम कैसे मिला , इस अनुभव हीन एजेंसी को मिले काम की चर्चा बंद नही हो रही है, जो यह यह जॉच का विषय है ।

सूत्रों की माने तो इलाहाबाद एनसीआर के सीपीआरओ और दिल्ली के भी लोग मिलकर इसमें खेल किया है । सूत्र तो यह भी बताते हैं कि इस खेल में दिल्ली रेलवे बोर्ड का एक उच्च अधिकारी सामिल है जिससे मिलकर काम हुआ है । इस टेंडर में सामिल कई एजेंसियां जहां डॉट- इन अनुभवहीन एजेंसी को टेंडर मिलने से नाराज है, वही रेलवे के कारनामों पर सवालिया निशान लग रहा है। इस मामले मे अब देखना यह है कि 2 साल का सोशल मीडिया को मिलने वाले 8 करोड़ के इस टेंडर प्रक्रिया की जांच होगी या फिर भ्रष्टाचार के आलम में यह सब मामला फाइलों में दब कर रह जायेगा यह एक बड़ा सवाल है।

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